द्रव यांत्रिकी में सीमा परतों के 5 प्रकार: संपीड़्य, असंपीड़्य, प्रक्षिप्त, दबाव प्रवण और मिक्स परतों की समझ।

द्रव यांत्रिकी में सीमा परतों के 5 प्रकार
द्रव यांत्रिकी में सीमा परत (Boundary Layer) एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो तरल या गैस के प्रवाह के दौरान सतह के निकट के हिस्से पर लागू होती है। जब एक तरल या गैस किसी सतह के ऊपर से प्रवाहित होती है, तो उसकी गति उस सतह के पास शून्य हो जाती है और जैसे-जैसे दूरी बढ़ती है, उसका वेग बढ़ता जाता है। यह वेग का भिन्नता उस सीमा परत के भीतर होती है। यहाँ, हम द्रव यांत्रिकी में सीमा परतों के 5 प्रकारों के बारे में चर्चा करेंगे:
- Laminar Boundary Layer (लैमिनार सीमा परत): यह तब बनती है जब प्रवाह व्यवस्थित और परतदार होता है। इसमें प्रत्येक परत दूसरे के ऊपर से बिना मिश्रण के गुजरती है। ऐसी सीमा परत तब होती है जब रेनॉल्ड्स संख्या (Re) कम होती है।
- Turbulent Boundary Layer (टर्बुलेंट सीमा परत): जब रेनॉल्ड्स संख्या उच्च होती है, तो सीमा परत टर्बुलेंट बन जाती है। इसमें तरल का प्रवाह अनियमित और मिश्रित होता है। यह ऊर्जात्मक मिश्रण और प्रभावी ऊष्मा और द्रव्यमान स्थानांतरण का कारण बनता है।
- Transitional Boundary Layer (संक्रमणकालीन सीमा परत): यह वह अवस्था है जब प्रवाह लैमिनार से टर्बुलेंट में बदलता है। यह सीमा परत लैमिनार और टर्बुलेंट दोनों प्रवाह के गुणों को दर्शाती है।
- Thermal Boundary Layer (तापीय सीमा परत): यह वह क्षेत्र है जिसमें तापमान में गिरावट होती है। जब किसी सतह के ऊपर द्रव प्रवाहित होता है, तो सतह के और द्रव के तापमान में अंतर के कारण यह सीमा परत बनती है। यह ऊष्मा संचरण (heat transfer) के अध्ययन में महत्वपूर्ण है।
- Concentration Boundary Layer (संकेन्द्रण सीमा परत): यह सीमा परत तब बनती है जब द्रव में घुलनशील पदार्थ का संकेन्द्रण प्रभावी होता है। ऐसे सीमा परत में, संकेन्द्रण भिन्नता सतह से दूर जाने पर कम हो जाती है। यह रासायनिक और जैविक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण होती है।
प्रवाह की जटिल प्राकृति और विभिन्न परिस्थितियों के कारण, विभिन्न प्रकार की सीमा परतों का निर्माण होता है। द्रव यांत्रिकी और ऊष्मा संचरण के अध्ययन में सीमा परतों की समझ अति महत्वपूर्ण है और यह विभिन्न इंजीनियरिंग प्रणालियों में डिजाइन और विश्लेषण के लिए आवश्यक होती है।