सुपरक्रिटिकल द्रव निष्कर्षण की प्रक्रिया, उसके उपयोग और लाभों को समझें, जो औद्योगिक और वैज्ञानिक प्रक्रियाओं में उपयोगी है।

सुपरक्रिटिकल द्रव निष्कर्षण कैसे काम करता है
सुपरक्रिटिकल द्रव निष्कर्षण (SFE) एक उन्नत प्रक्रिया है जो कई उद्योगों में उपयोग की जाती है, विशेष रूप से खाद्य और औषधीय उद्योग में। इस तकनीक का प्रमुख उद्देश्य प्राकृतिक पदार्थों से सक्रिय अवयवों को अलग करना और शुद्ध करना है।
सुपरक्रिटिकल द्रव की परिभाषा
सुपरक्रिटिकल द्रव वो द्रव होता है जो उसके समीपी तापमान और समीपी दाब (critical temperature and pressure) के ऊपर होता है। इस अवस्था में, द्रव में न केवल द्रव की गुणधर्म होते हैं बल्कि गैस के गुणधर्म भी होते हैं।
सुपरक्रिटिकल CO2 का उपयोग
सबसे सामान्य सुपरक्रिटिकल द्रव जो निष्कर्षण में उपयोग किया जाता है, वो है सुपरक्रिटिकल CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड)। CO2 की समीपी तापमान 31.1 °C और समीपी दाब 7.38 मेगापास्कल (MPa) होता है।
निष्कर्षण की प्रक्रिया
- पहले, द्रव को समीपी तापमान और दाब के ऊपर गरम और दाबित किया जाता है, ताकि वह सुपरक्रिटिकल अवस्था में जा सके।
- सुपरक्रिटिकल CO2 को फिर निष्कर्षण बर्तनों में डाला जाता है, जिसमें टारगेट पदार्थ उपस्थित होता है।
- CO2 सक्रिय अवयवों को घोलकर बाहर लाता है, जिससे निष्कर्षण होता है।
- निष्कर्षित पदार्थ को अलग करने के लिए CO2 का दाब कम किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप अवयव अलग हो जाते हैं।
- अंत में, CO2 को फिर से संचालित किया जा सकता है, जिससे प्रक्रिया अत्यधिक प्रभावी और पर्यावरण अनुकूल बनती है।
लाभ
- सुपरक्रिटिकल CO2 एक गैर-विषाक्त, गैर-दहनशील और पर्यावरण-अनुकूल द्रव है।
- इस प्रक्रिया में अत्यधिक शुद्ध और उच्च गुणवत्ता वाले निष्कर्षण को सुनिश्चित किया जाता है।
- CO2 को पुनःप्रयोग किया जा सकता है, जिससे वह आर्थिक रूप से किफायती भी बनता है।
निष्कर्ष
सुपरक्रिटिकल द्रव निष्कर्षण आधुनिक विज्ञान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो कई उद्योगों में प्रकृतिगत उत्पादों के शुद्धिकरण और निष्कर्षण में उपयोगी साबित होता है। इसके पर्यावरण-अनुकूल और प्रभावी प्रक्रिया के कारण यह आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण हो सकता है।